Tuesday, September 3, 2019

मध्य प्रदेश का इतिहास

मध्य प्रदेश का इतिहास पाषाण युग भीमबेटका शैलाश्रय चित्रकारी भीमबैठिका की गुफाएं वर्तमान के मध्य प्रदेश में पिलेओलिथिक बस्तियों के प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। नर्मदा नदी घाटी के विभिन्न स्थानों पर पाषाण युग के कई उपकरण पाये गए है। एरान, कायथ, महेश्वर, नागदा और नवदतोली सहित कई जगहों पर ताम्रयुगीन स्थानों की खोज की गई है।[1] कई स्थानों पर लगभग 30,000 ईसा पूर्व के गुफा चित्रों की खोज की गई है।[2] वर्तमान मध्य प्रदेश में मनुष्यों की बस्तियां मुख्य रूप से नर्मदा, चंबल और बेतवा जैसे नदियों की घाटियों में विकसित हुई हैं।[3] वैदिक काल प्रारंभिक वैदिक काल के दौरान, विंध्य पर्वतों ने इंडो-आर्यन क्षेत्र की दक्षिणी सीमा का गठन किया था। प्राचीनतम प्रचलित संस्कृत पाठ ऋग्वेद में, नर्मदा नदी का उल्लेख नहीं मिलता है। चौथी सदी ईसापूर्व व्याकरणिक पाणिनी ने मध्य भारत में अवंती जनपद का उल्लेख किया। इसमें नर्मदा के दक्षिण में बसे केवल एक क्षेत्र अष्मका का उल्लेख है।[3] बौद्ध पाठ अंगुतारा निकैया ने सोलह महाजनपदों का नाम दिया, जिनमें से अवंती, चेदि और वत्स में मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों आते है। महावस्तु ने पूर्वी मालवा क्षेत्र में एक अन्य दशर्न नामक राज्य का उल्लेख किया था। पाली भाषा मे लिखित बौद्ध लेखों मे मध्य भारत में उज्जैनी (उज्जयिनी), वेदीसा (विदिशा) और महिस्सती (महिष्मति) सहित कई महत्वपूर्ण शहरों का उल्लेख हैं।[4] प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, अवंती मे हैहय राजवंश, वितिहोत्रा वंश (हैहय की एक शाखा) और प्रद्योत वंश द्वारा क्रमिक रूप से शासन किया गया था। प्रद्योत के शासन में, अवंती भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्रमुख शक्ति बन गई।[5] बाद में शिशुनाग ने इस पर कब्जा कर मगध साम्राज्य में मिला लिया।[6] शिशुनाग वंश को नंदों ने उखाड़ दिया, जिन्हें बाद में मौर्यों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।[7] मौर्य और उनके उत्तराधिकारी साँची का स्तूप जिसे ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने बनवाया था। उज्जैन शहर छठी शताब्दी में भारतीय शहरीकरण की लहर में एक प्रमुख केंद्र बन गया, और मालवा या अवंती राज्य के मुख्य शहर के रूप में स्थापित हो गया। इसके पूर्व में, चेदी राज्य, बुंदेलखंड में स्थित था। चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा 322 ईसा पूर्व उत्तर भारत को संयुक्त कर, मौर्य साम्राज्य (322 से 185 ईसा पूर्व) की स्थापना, जिसमें आधुनिक मध्यप्रदेश के सभी क्षेत्र शामिल थे। राजा अशोक की पत्नी, वर्तमान भोपाल के उत्तर में स्थित एक शहर विदिशा से थी। अशोक की मौत के बाद मौर्य साम्राज्य का पतन होने लगा और 3 से 1 शताब्दी ईसा पूर्व तक मध्यभारत में शक, कुशाण और कई स्थानीय राजवंश स्वतंत्र रूप से राज्य करने लगे। प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में उज्जैन, गंगा के मैदान और भारत के अरबसागर बंदरगाहों के बीच व्यापार मार्गों पर स्थित होने के कारण, एक प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र के रूप में उभरा। इसके अलावा यह हिंदू और बौध्दौ के लिये एक महत्वपूर्ण केंद्र भी था। उत्तरी दक्कन के सातवाहन वंश और पश्चिमी सतरापों का शक राजवंश 1 से 3 शताब्दियों तक मध्य प्रदेश के नियंत्रण के लिए आपस में लड़ते रहे। दक्षिण भारतीय के सातवाहन वंश के राजा गौतमपुत्र सातकर्णी ने दूसरी शताब्दी में शक राजाओं को हरा कर मालावा और गुजरात के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया। उत्तर भारत में चौथी और पाँचवीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य कि स्थापना हुई, जिसे भारत के लिये एक "प्रभावी या सुनहरा" समय माना जाता है। पारिवराज वंश ने मध्य प्रदेश में गुप्त साम्राज्य के सामंत के रूप में शासन किया। वाकाटक वंश गुप्ताओं के दक्षिणी पड़ोसी थे, जो अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक उत्तरी डेक्कन पठार पर शासन करते थे। पाँचवीं शताब्दी के अंत तक इन साम्राज्यों का पतन हो गया। मध्यकालीन खजुराहो का जेवेरी मन्दिर हफ्थलीन लोगो (हूणों/गोरेहूणो) के आक्रमण के बाद गुप्त वंश का पतन होने लगा और भारतवर्ष छोटे छोटे टुकड़ों में बँट गया । मालवा के राजा यशोधवर्मन ने गोर हूणों को हराया था और उनके प्रसार को रोका। थानेसर के राजा हर्षवर्धन ने अपनी मृत्यु(647C) से पहले उत्तर भारत को पुनर्गठित किया मालवा पर दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट वंश का राज 8वी से 10वी शताब्दी तक चला मध्यकालीन समय मे ही राजपूत , मालवा के परमार , बुन्देलखंड के चंदेल राजाओ का आविर्भाव हुआ। खजुराहो के मक़न्दिर का निर्माण भी चंदेल राजाओ ने करवाया था । परमार वंश के राजा भोजपाल (1010C-1060C) बहुविद लेखक हुए। इसी समय के आसपास महाकौशल ओर गोंडवाना क्षेत्र में गोंड साम्राज्य का जन्म हुआ । पश्चिम मध्य प्रदेश पर 13वी शताब्दी में तुर्को ने शासन किया । दिल्ली सल्तनत के पतन के बाद अन्य क्षेत्रीय राज्यो का आविर्भाव हुआ जिनमे ग्वालियर के गोमर वंश,ओर मालवा की मुस्लिम सल्तनत प्रमुख थे। आधुनिक
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मध्यप्रेदेश को तीन भागों में विभाजित किया गया। भाग क, भाग ख, और भाग ग। भाग क की राजधानी नागपुर, भाग ख की ग्लावलियर और इंदौर तथा भाग ग की रीवा रखी गई। 1955 राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर मध्यप्रेदेश का गठन भाषीय आधार पर किया गया। उस समय मध्यप्रेदेश मैं कुल 79 रियासतें थी। इसकी राजधानी भोपाल रखी गई। इस समय मध्यप्रेदेश में 8 संभाग व 43 जिले थे। 26 जनवरी 1972 को दो नए जिले भोपाल तथा राजनंदगांव का निर्माण हुआ। 1982 मैं दिग्विजय सरकार ने दस नए जिले बनाने का निर्णय किया। 1998 मैं सिंहदेव कमेठी का गठान किया जिसके आधार पर 6 और नए जिले बनाये गए। इस तरह 1998 में जिलो की संख्या 61 हो गई। 1 नवम्बर 2000 को भारत के 26वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ का गठन किया गया जिससे मध्यप्रेदेश के 16 जिले छत्तीसगढ़ में चले गए। 15 अगस्त 2003 को तीन नए जिले अशोकनगर , बुरहानपुर तथा अनूपपुर का निर्माण किया। तथा 17 मई 2008 को अलीराजपुर 24 मई 2008 को सिंगरौली , 14 जून 2008 को सहडोल संभाग, 25 मार्च 2013 को नर्मदापुरम संभाग का गठन किया। 16 अगस्त 2013 को आगर मालवा का निर्माण किया। इस प्रकार वर्तमान में मध्यप्रदेश 52 जिले तथा 10 संभाग हैं। मध्य प्रदेश का 52 वां जिला निवाड़ी 01 अक्टूबर 2018 को अस्तित्व में आया। जो टीकमगढ़ जिले की 3 तहसील निवाड़ी, ओरछा, और पृथ्वीपुर को मिलकर बनाया गया।

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