तेरी यारी में हम कुछ बिगड़ से गए
शरीफ तो वैसे भी थे नहीं अब एक्स्ट्रा कमीने हो गए.
Sunday, September 8, 2019
Friday, September 6, 2019
Tuesday, September 3, 2019
मध्य प्रदेश का इतिहास
मध्य प्रदेश का इतिहास
पाषाण युग
भीमबेटका शैलाश्रय चित्रकारी
भीमबैठिका की गुफाएं वर्तमान के मध्य प्रदेश में पिलेओलिथिक बस्तियों के प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। नर्मदा नदी घाटी के विभिन्न स्थानों पर पाषाण युग के कई उपकरण पाये गए है। एरान, कायथ, महेश्वर, नागदा और नवदतोली सहित कई जगहों पर ताम्रयुगीन स्थानों की खोज की गई है।[1] कई स्थानों पर लगभग 30,000 ईसा पूर्व के गुफा चित्रों की खोज की गई है।[2] वर्तमान मध्य प्रदेश में मनुष्यों की बस्तियां मुख्य रूप से नर्मदा, चंबल और बेतवा जैसे नदियों की घाटियों में विकसित हुई हैं।[3]
वैदिक काल
प्रारंभिक वैदिक काल के दौरान, विंध्य पर्वतों ने इंडो-आर्यन क्षेत्र की दक्षिणी सीमा का गठन किया था। प्राचीनतम प्रचलित संस्कृत पाठ ऋग्वेद में, नर्मदा नदी का उल्लेख नहीं मिलता है। चौथी सदी ईसापूर्व व्याकरणिक पाणिनी ने मध्य भारत में अवंती जनपद का उल्लेख किया। इसमें नर्मदा के दक्षिण में बसे केवल एक क्षेत्र अष्मका का उल्लेख है।[3] बौद्ध पाठ अंगुतारा निकैया ने सोलह महाजनपदों का नाम दिया, जिनमें से अवंती, चेदि और वत्स में मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों आते है। महावस्तु ने पूर्वी मालवा क्षेत्र में एक अन्य दशर्न नामक राज्य का उल्लेख किया था। पाली भाषा मे लिखित बौद्ध लेखों मे मध्य भारत में उज्जैनी (उज्जयिनी), वेदीसा (विदिशा) और महिस्सती (महिष्मति) सहित कई महत्वपूर्ण शहरों का उल्लेख हैं।[4]
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, अवंती मे हैहय राजवंश, वितिहोत्रा वंश (हैहय की एक शाखा) और प्रद्योत वंश द्वारा क्रमिक रूप से शासन किया गया था। प्रद्योत के शासन में, अवंती भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्रमुख शक्ति बन गई।[5] बाद में शिशुनाग ने इस पर कब्जा कर मगध साम्राज्य में मिला लिया।[6] शिशुनाग वंश को नंदों ने उखाड़ दिया, जिन्हें बाद में मौर्यों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।[7]
मौर्य और उनके उत्तराधिकारी
साँची का स्तूप जिसे ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक ने बनवाया था।
उज्जैन शहर छठी शताब्दी में भारतीय शहरीकरण की लहर में एक प्रमुख केंद्र बन गया, और मालवा या अवंती राज्य के मुख्य शहर के रूप में स्थापित हो गया। इसके पूर्व में, चेदी राज्य, बुंदेलखंड में स्थित था। चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा 322 ईसा पूर्व उत्तर भारत को संयुक्त कर, मौर्य साम्राज्य (322 से 185 ईसा पूर्व) की स्थापना, जिसमें आधुनिक मध्यप्रदेश के सभी क्षेत्र शामिल थे। राजा अशोक की पत्नी, वर्तमान भोपाल के उत्तर में स्थित एक शहर विदिशा से थी। अशोक की मौत के बाद मौर्य साम्राज्य का पतन होने लगा और 3 से 1 शताब्दी ईसा पूर्व तक मध्यभारत में शक, कुशाण और कई स्थानीय राजवंश स्वतंत्र रूप से राज्य करने लगे। प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में उज्जैन, गंगा के मैदान और भारत के अरबसागर बंदरगाहों के बीच व्यापार मार्गों पर स्थित होने के कारण, एक प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र के रूप में उभरा। इसके अलावा यह हिंदू और बौध्दौ के लिये एक महत्वपूर्ण केंद्र भी था। उत्तरी दक्कन के सातवाहन वंश और पश्चिमी सतरापों का शक राजवंश 1 से 3 शताब्दियों तक मध्य प्रदेश के नियंत्रण के लिए आपस में लड़ते रहे।
दक्षिण भारतीय के सातवाहन वंश के राजा गौतमपुत्र सातकर्णी ने दूसरी शताब्दी में शक राजाओं को हरा कर मालावा और गुजरात के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया।
उत्तर भारत में चौथी और पाँचवीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य कि स्थापना हुई, जिसे भारत के लिये एक "प्रभावी या सुनहरा" समय माना जाता है। पारिवराज वंश ने मध्य प्रदेश में गुप्त साम्राज्य के सामंत के रूप में शासन किया। वाकाटक वंश गुप्ताओं के दक्षिणी पड़ोसी थे, जो अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक उत्तरी डेक्कन पठार पर शासन करते थे। पाँचवीं शताब्दी के अंत तक इन साम्राज्यों का पतन हो गया।
मध्यकालीन
खजुराहो का जेवेरी मन्दिर
हफ्थलीन लोगो (हूणों/गोरेहूणो) के आक्रमण के बाद गुप्त वंश का पतन होने लगा और भारतवर्ष छोटे छोटे टुकड़ों में बँट गया । मालवा के राजा यशोधवर्मन ने गोर हूणों को हराया था और उनके प्रसार को रोका। थानेसर के राजा हर्षवर्धन ने अपनी मृत्यु(647C) से पहले उत्तर भारत को पुनर्गठित किया मालवा पर दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट वंश का राज 8वी से 10वी शताब्दी तक चला मध्यकालीन समय मे ही राजपूत , मालवा के परमार , बुन्देलखंड के चंदेल राजाओ का आविर्भाव हुआ। खजुराहो के मक़न्दिर का निर्माण भी चंदेल राजाओ ने करवाया था । परमार वंश के राजा भोजपाल (1010C-1060C) बहुविद लेखक हुए। इसी समय के आसपास महाकौशल ओर गोंडवाना क्षेत्र में गोंड साम्राज्य का जन्म हुआ । पश्चिम मध्य प्रदेश पर 13वी शताब्दी में तुर्को ने शासन किया । दिल्ली सल्तनत के पतन के बाद अन्य क्षेत्रीय राज्यो का आविर्भाव हुआ जिनमे ग्वालियर के गोमर वंश,ओर मालवा की मुस्लिम सल्तनत प्रमुख थे।
आधुनिक
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मध्यप्रेदेश को तीन भागों में विभाजित किया गया। भाग क, भाग ख, और भाग ग। भाग क की राजधानी नागपुर, भाग ख की ग्लावलियर और इंदौर तथा भाग ग की रीवा रखी गई।
1955 राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर मध्यप्रेदेश का गठन भाषीय आधार पर किया गया। उस समय मध्यप्रेदेश मैं कुल 79 रियासतें थी। इसकी राजधानी भोपाल रखी गई। इस समय मध्यप्रेदेश में 8 संभाग व 43 जिले थे।
26 जनवरी 1972 को दो नए जिले भोपाल तथा राजनंदगांव का निर्माण हुआ। 1982 मैं दिग्विजय सरकार ने दस नए जिले बनाने का निर्णय किया। 1998 मैं सिंहदेव कमेठी का गठान किया जिसके आधार पर 6 और नए जिले बनाये गए। इस तरह 1998 में जिलो की संख्या 61 हो गई।
1 नवम्बर 2000 को भारत के 26वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ का गठन किया गया जिससे मध्यप्रेदेश के 16 जिले छत्तीसगढ़ में चले गए।
15 अगस्त 2003 को तीन नए जिले अशोकनगर , बुरहानपुर तथा अनूपपुर का निर्माण किया। तथा 17 मई 2008 को अलीराजपुर 24 मई 2008 को सिंगरौली , 14 जून 2008 को सहडोल संभाग, 25 मार्च 2013 को नर्मदापुरम संभाग का गठन किया।
16 अगस्त 2013 को आगर मालवा का निर्माण किया। इस प्रकार वर्तमान में मध्यप्रदेश 52 जिले तथा 10 संभाग हैं। मध्य प्रदेश का 52 वां जिला निवाड़ी 01 अक्टूबर 2018 को अस्तित्व में आया। जो टीकमगढ़ जिले की 3 तहसील निवाड़ी, ओरछा, और पृथ्वीपुर को मिलकर बनाया गया।
दो दोस्तों की कहानी
बहुत समय पहले की बात है ,
दो दोस्त बीहड़ इलाकों से होकर शहर जा रहे थे..
गर्मी बहुत अधिक होने के कारण
वो बीच-बीच में रुकते और आराम करते उन्होंने अपने साथ
खाने-पीने की भी कुछ चीजें रखी हुई थीं ।
जब दोपहर में उन्हें भूख लगी तो दोनों ने एक
जगह बैठकर खाने का विचार किया...
खाना खाते–खाते दोनों में किसी बात को लेकर बहस छिड
गयी. . और धीरे-धीरे बात इतनी बढ़ गयी कि एक दोस्त ने
दूसरे को थप्पड़ मार दिया ।
पर थप्पड़ खाने के बाद भी दूसरा दोस्त चुप रहा और कोई विरोध नहीं किया. . .।
बस उसने पेड़ की एक टहनी उठाई और उससे मिटटी पर लिख दिया,
“आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने
मुझे थप्पड़ मारा... ।”
थोड़ी देर बाद उन्होंने
पुनः यात्रा शुरू की
मन मुटाव होने के कारण
वो बिना एक-दूसरे से बात किये
आगे
बढ़ते जा रहे थे कि
तभी थप्पड़ खाए दोस्त के
चीखने की
आवाज़ आई ,
वह गलती से दलदल में फँस
गया था. . .।
दूसरे दोस्त ने तेजी दिखाते हुए
उसकी मदद की और उसे दलदल से
निकाल दिया. . .।
इस बार भी वह दोस्त कुछ नहीं बोला
उसने बस एक नुकीला पत्थर उठाया और एक
विशाल पेड़ के तने पर लिखने लगा,
”आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने मेरी जान बचाई। ”
उसे ऐसा करते देख दूसरे मित्र से रहा नहीं गया और उसने पूछा ,
“ जब मैंने तुम्हे थप्पड़ मारा तो तुमने
मिटटी पर लिखा और जब मैंने
तुम्हारी जान बचाई तो तुम पेड़
के तने पर कुरेद -कुरेद कर लिख रहे हो,
ऐसा क्यों ?”
दोस्त ने बहुत खूबसूरत जवाब दिया,
”जब कोई तकलीफ दे तो हमें उसे अन्दर तक नहीं बैठाना चाहिए
ताकि क्षमा रुपी हवाएं इस मिटटी की तरह ही उस तकलीफ को
हमारे जेहन से बहा ले जाएं ,
लेकिन जब कोई हमारे लिए कुछ अच्छा करे तो उसे इतनी गहराई से
अपने मन में बसा लेना चाहिए कि वो कभी हमारे जेहन से मिट ना सके।
#NITIN
Monday, September 2, 2019
धाकड़ समाज का इतिहास
Dhakad Samaj
Welcome to Dhakar Brothers
जय धारणीधर - जय धाकड़
मथुरा नरेश महाराज सुरसेन के सुपुत्र महाराज वसुदेव हुए l
महाराज वसुदेव की पत्नी रोहिणी ने बलराम एवम् देवकी ने
श्रीकृष्ण को जन्म दिया l शेषनाग के अवतार श्रीलक्ष्मण के
अवतार श्रीबलराम हे l आपने हल को कृषि यंत्र रूप मे व युद्ध
मे शस्त्र के रूप मे उपयोग किया l इसीलिए आप हलधर कहलाए l
अपने कृषि कार्य को प्रमुखता दी व इसके विकास मे महत्वपूर्ण योगदान
दिया l हमारा समाज भी खेतीहर समाज हे l भगवान हलधर धारणीधर
श्री बलराम हमारे पूज्यनीय हे l धारणीधर भगवान का प्रसिद्ध मंदिर
मान्डूकला (राजस्थान) मे सुंदर तालाब के किनारे शोभमान हे l
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संक्षिप्त परिचय
धाकड पुराण के अनुसार ''धाकड़ क्षत्रिय'' समूह का उद्भव महाभारत काल में हुआ। ''धाकड क्षत्रिय'' समूह लगभग बारहवीं शताब्दी के बाद एक जाति के रूप में परिणित हुआ। ''धाकड '' ऐतिहासिक क्षत्रिय वंशजों में से बने हुयेएक समूह का नाम है, जिसका मूल पेशा कृषि है। कालान्तर में यह जाति रूप में परिवर्तित हो गया। बहुत समय पहले की धाकड क्षत्रियों के विषय में यह कहावत सुनी जाती है- ''धाकड लाकड सायर सा, नर बारे नल वंश'' अर्थात् नर बर के राजा नल के वंशज धाकड सायर की लकडी के समान मजबूत थे। ''धाकड'' क्षत्रियों के विषय में एक अंग्रेज सेना नायक जेम्स मेड्रिड ने कहा था कि -''धाकड क्षत्री'' अफगानी घोड ों की तरह मजबूत, कुशल तथा चतुर लडाकू हैं। आजकल ''धाकड'' शब्द का प्रयोग तेजतर्रार, वीरता और मजबूती का भाव प्रकट करने के लिए किया जाता है। जिससे जाहिर होता है कि किसी समय में धाकड क्षत्रियों का वैभव ऊॅचा रहा है। कुछ धाकड क्षत्रिय वंशज पृथ्वीराज तृतीय की राजसभा में धवल, सामन्त रहे थे जिनकी वीरता एवं वैभव का अनुभव ''पृथ्वीराजरासो'' ग्रन्थ की इस पंक्ति के द्वारा होता है- ''धब्बरे धाबर धक्करेै रण बंकरै।'' ''धाकड क्षत्रिय'' देश में नागर, मालव, किराड तीन उपसमूहों के रूप में प्रायः राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में पाये जाते हैं। ''धाकड'' श्री धरणीधर भगवान (बलदाऊ) जिन्हैं हलधर कहा जाता है, को अपना ईष्टदेव मानते हैं। श्री धरणीधर भगवान का नागर चाल क्षेत्र के मांडकला गांव में तथा जिला झालावाड के सुगर गांव में भव्य मन्दिर है। ऐतिहासिक वर्णनों एवं प्रमाणों के अनुसार बारहवीं शताब्दी से पूर्व सभी क्षत्रिय वंश शाखाओं के वंशजों को ''क्षत्रिय'' शब्द का ही प्रयोग होता था। लगभग बारहवीं-तेरहवीं शताबदी से राजवंशी क्षत्रियों को राजपूत तथा कृषिकर्मी क्षत्रियों को धाकड़ कहा जाने लगा। अतः धाकड सभी क्षत्रिय वंश शाखाओं में से बने हुए एक समूह का नाम है, जिनका मूल पेशा कृषि था। देशभर में धाकड जाति के लोग अधिकतर कृषि प्रधान ही मिलते हैं। पहले किसी की नौकरी करना धाकड जाति में घृणास्पद माना जाता था। ''उतम खेती , मध्यम व्यापार, कनिष्ठ चाकरी'' के कथनानुसार अब भी धाकड जाति में कर्मठ किसान पाये जाते हैं। वर्तमान में धाकड क्षत्रिय तीन उपसमूहों में विभकत हैं- नागर, मालव और किराड। इन उपसमूहों में परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध एवं रोटी बेटी व्यवहार होता है। धाकड जाति में पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं है। धाकड जाति प्रायः राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में पाई जाती है।
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धाकड़ शब्द का शाब्दिक अर्थ
शाब्दिक अर्थ-
''धाकड '' शब्द धरखड या धरकट शब्द का अपभं्रंश है, जो समानार्थक हैं।
धरखड = धरती जोतने वाला समूह
धर =धरती (धरती जोतनेवाल ) कृषक
खड = जोतने वाला
कट =काटने वाला
धाकड क्षत्रिय = कृषक क्षत्रियों के समूह का नाम ।
धर =धरती (धरती वाले )कृषक
कड = वाले
धाक + अड =धाकड
धाक् =रौब (रौबीला,हठीला)
अड= अड ना, हठी
धा =धाय (पालन करना )
कड = वाले अर्थात अन्न धन पैदाकर पालन करने वाले क्षत्री (कृषक क्षत्री)
''भाष्कर'' ग्रन्थ के अनुसार
धाकड =धरती जोतने वाला या धरती के कण बिखेरने वाला।
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धाकड़ उत्पत्ति एवं उपसमूह
धाकड पुराण एवं पुस्तक वस्त्रभूषण के अनुसार
महाभारत काल में योगिराज श्रीकृष्ण जो मुकट व वंशीधर रहे थे दाउबलराम जो हलधारण करने के कारण हलधर कहलाये ने पुरूषार्थी कृषकों को संगठित किया और कृषि कार्य को करते हुए क्षात्रधर्म का पालन करने के लिऐ प्रेरित किया, वे क्षत्री ही ''धाकड क्षत्रिय'' कहलाये। बलदाउजी को धरणीधर भी कहते हैं यह शेषनाग अवतार थे। उपरोक्त की पुनरावृति वि० सं.११४० में अजमेर के राजा बीसल देव के समय में हुई । जो कृषक क्षत्रीयत्व को भूलकर के कृषि कार्य में लगे हुए थे, साथ ही युद्ध में क्षत्रीयों के वीरगति को प्राप्त हो जाने से संखया कम हो रही थी। उस समय बीसल देव को उसके सहयोगी मालवा नरेश उदयादित्य परमार ने एक युक्ति बतलाई। तद्नुसार उन्होनें उन कृषकों को जो मूलतः क्षत्रीय ही थे, संगठित किया और उनके वह स्वयं ही अधिनायक बने। उस समूह का नाम उन्होंने धरा को खड करने वाला अर्थात् भूमि को जोतने वाला ''धरखड'' क्षत्रीय रखा। जो कालान्तर में परिवर्तित होकर धाकड कहलाया।
नागर चाल जागा की पोथी के अनुसार
चौहानों की २४ शाखाओं में से एक शाखा दाईमा चौहान से राजा धरणीधर हुऐ, उन्होंने शस्त्र छोडकर (राजकार्य छोडकर )कृषि कार्य प्रारम्भ किया। श्री धरणीधर से ही ''धाकड'' नामकरण हुआ। राजा धरणीधर के चार पुत्र थे-' (१)शारपाल (२) वीरपाल (३) विशुपाल (४)वावनिया। जिनके उतरोतर वंश से चार शाखायें हुई :- १. शारपाल-सोलिया मेवाडा धाकड २. वीरपाल- नागर धाकड ३. विशुपाल-मालव धाकड ४. वावनिया-पुरवीया धाकड (किराड) कृषि व्यवसाय को अपनाकर वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर बस गये। स्थान (क्षेत्र) विशेष के आधार पर भी नामकरण पर प्रभाव पड़ा जैसे-नागर चाल बूंदी की सीमा व नागौर परगने में जाकर बसे वे नागर, मालवा में बसे वे मालव एवं पूर्वउतराचल में जाकर बसे वे किराड कहलाये।
लटूर जागा, कैथून जिला कोटा के अनुसार
राजा बीसलदेव जी ने गढ अजमेर में राज किया। दिल्ली में राज किया । बीसलदेवजी के तपोधन पुत्र हुआ। तपोधन के धरणीधर पुत्र हुआ। धरणीधर के अजमल जी पुत्र हुआ। अजमलजी की धर्मपत्नी पूरणमलजी की कान कंवरबाई की पढीपात की पुत्री। जिनका पुत्र-नागराज जी, कानाजी, माधौजी, नेनगजी हूवा। दूजी धर्मपत्नी कीवसी की केसरबाई पोखरणा ब्राह्मण की। बेटा-धारू जी हुवा। १- नागराज जी- अन्तरवेद की धरती, नागर चाल में बंटया जिससे नागर धाकड हुए। १४० गोत्र। २- कानाजी- पूरब की धरती में बंटया जिससे किराड धाकड हुए। किराड गोत्र ३६० ३- माधोजी-डीडवाना की धरती में बंटया जिससे मेसरी (महेद्गवरी)धाकड हुऐ। गोत्र १४४ ४- नेनगजी-मालवा देश में बंटया,जिससे नथफोडा धाकड हुऐ। गोत्र १४२ ५- धारूजी -मालवा देश में बंटया, जिससे जनेउ कतरा माली (मालव)धाकड हुए। गोत्र१०९ ''उक्तांकित जागा लेखों के अनुसार धाकड जाति चौहान बंशी होनी चाहिए, जबकि धाकड जाति में सभी क्षत्रिय वश पाये जाते है। जागाओं की लिखने की लिपि एक अलग ही प्रकार की होती है जिसे मैं अपने शब्दों में '' अद्गुाद्ध लेखन लिपि ही कहूंगा। इन जागाओं के लेखों में ''कही की ईट कही का रोडा, भानवती ने कुनवा जोडा'' वाली कहावत चरितार्थ होती हैं। जिसके कारण इनके लेख ऐतिहासिक तथ्यों से पूर्णतया मेल नहीं खाते हैं।'' अन्ततः उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि धाकड जाति क्षत्रीय वर्ण की है। ''धाकड'' कृषि कर्मी क्षत्रीयों के एक समूह का नाम है, जिसमें सभी क्षत्रीय वंश पाये जाते हैं। धाकड समूह का उदभव महाभारत काल में हुआ वि०सं० ११४० में अजमेर के राजा बीसलदेव धाकड (धरखड)समूह के अधिनायक बने। कालान्तर में यह समूह धाकड जाति के रूप में परिणित हो गया। अजमेर के राजा वीसलदेव के समय में भंयकर युद्धाग्नि या अकाल से पीडित होने के कारण अथवा यह कहिए किसी भी कारणवश धाकड क्षत्रिय अजमेर छोड़कर यत्र-तत्र बस गये। पृथक-पृथक क्षेत्रों या स्थानों पर बसने के कारण क्षेत्रों या स्थानों के नाम पर ही पृथक-पृथक उपसमूहों का नामकरण हुआ ।
मालवा जागाओं की पोथी के अनुसार
अजमेर के राजा वीसलदेव चौहान थे। उनके समय में ब्राह्मणों का बड़ा बर्चस्व था, वह राजा से रूष्ट थे। उन्होंने कर एवं लगान देना बन्द कर दिया। तब बीसलदेव ने ब्राह्मणों को वश में करने के लिए मंत्री की सलाह से एक यज्ञ का आयोजन किया यज्ञ में नो लाख छत्तीस हजार ब्राह्मणों को ब्रह्मभोज का आयोजन था। भोजन में मास मिलाया गया जिससे कि उनका ब्रह्मत्व नष्ट हो जावे। जब ब्राह्मणो को भोजनपरोस दिया गया तब भोजन करते समय आकाशवाणी द्वारा उनको मालूम हुआ कि भोजन में मास मिला हुआ है, ब्राह्मण उठ खडे हुऐ और क्रोधित होकर श्राप देने लगे कि-''हे राजा तेरा राज्य नष्ट हो जायेगा।'' श्राप देकर प्द्गचाताप करने लगे, कुछ ब्राह्मणों ने आत्महत्या भी कर ली शेष सब मिलकर धरणीधर ऋषि के पास विचार विमर्श करने पहुंचे। सारा वृतान्त ऋषि को सुनाया। ऋषि ने कहा कि तुम धर्म से विचलित हुऐ हो, तुम्हारा ब्रह्मत्व नष्ट हो चुका है। अतः अब तुम सब मिलकर एक साथ रहो तुमने धोखे से अभक्ष का भक्षण किया हैं। जिसके कारण आज से तुम्हारी जाति धाकड कहलायेगी। उस समय ब्राह्मणो ने अजमेर छोडने की प्रतिज्ञा की तथा स्वेच्छा से कृषि कार्य को अपना लिया। ''उपरोक्त लेखन से ऐसा प्रतीत होता है कि राजा बीसलदेव द्वारा किये गये यज्ञ आयोजन में सम्मलित होने वाले ब्राह्मण निराक्षत्री रह गये। जिन्होंने स्वेच्छा से कृषि कार्य को अपनाकर क्षात्रधर्म का पालन करनेलगें तथा अजमेर राज्य छोड कर यत्र तत्र बस गये।''
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उपसमूह
नागर
अजमेर के राजा बीसलदेव के शासन काल में उत्तर पद्गिचम की तरफ खैबर के दर्रे से मुसलमानों के लगातार आक्रमण के कारण साथ ही भीषण अकाल पड़ने के कारण उसके राज्य में अव्यवस्था उत्पन्न हो गई। किसान तबाह हो गये, खेती बाडी नष्ट हो गयी, जनजीवन त्रस्त हो गया। फलस्वरूप वहां से अधिकाशं कृषक क्षत्रिय (धरखड-धाकड)पलायन कर सुविधानुसार बस गये। जो नागर चाल (उण्यिारा बूंदीकी सीमा ) और नागौर परगने में जाकर बसे थे, मूलतः ''नागर'' धाकड कहलाये। वर्तमान में जयपुर, अलवर, भरतपुर, करौली, आगरा, मथुरा जिलों में भी नागर धाकड रहते हैं।
मालव
मालव नाम की एक प्राचीन जाति थी। मालव जाति के लोगों ने आकर (पूर्वी मालवा), अवन्ति (पद्गिचमी मालवा),उज्जैन तथा उसके आस-पास के भागों पर अपना अधिकार जमाया तो उन्होंने अपना अधीन किये हुए इलाकों का सामूहिक नाम मालवा प्रदेश रखा। प्रतापगढ, कोटा, झालावाड तथा कुछ हिस्सा टोंक का मालवा प्रदेश के अर्न्तगत ही था। मलवा पर परमार वंशी क्षत्रियों का भी राज्य रहा। वि.सं. १०२८ से १०५४ तक के समय में मालवा का परमार वंशी राजा ''मुंज'' रहा। उसके दरबार के पंडित हलायुद्ध ने -- पिंगल सूत्र विधि'' में मुंज को ''ब्रह्म क्षत्र'' कुल का कहा है। ब्रह्मक्षत्र शब्द का अर्थ है, जिसमें ब्रह्मत्व एवं क्षत्रत्व दोनों का गुण विद्यमान हों या जिनके पूर्वज ब्राह्मण से क्षत्रिय हो गये हों। अतः राजा मुंज के समय तक परमार वंद्गिायों को ब्रह्मक्षत्र कहा गया। प्रसिद्ध इतिहासकार डा. दशरथ शर्मा ने बिजौलिया लेख के आधार पर चौहानों को ब्राह्मणों की सन्तान बतलाया है। कर्नल टांड ने चौहानों को विदेशी माना है। प्रतिहार वंशी क्षत्रियों को जब बौद्ध धम्र से वापस वैदिक धर्म में दीक्षित कर (अग्नि साक्षी संस्कार कर ) लिया गया तो उनके मूल पुरूष को यज्ञप्रतिहार कहा गया। इसकी एक शाखा मालवा में जाकर रही थी। ''पृथ्वीराज राशो'' में परमार, चौहान, सौलंकी, प्रतिहार (परिहार )वंशों को अग्निवंशी लिखा है। अग्निवंश का तात्पर्य है कि इनके मूल पुरूष क्षत्रिय नहीं थे, जिससे उनको ''अग्नि साक्षी'' का संस्कार कर क्षत्रियों में मिला लिया । मालव धाकड अग्निवंद् गाी क्षत्रिय है। अजमेर के राजा वीसलदेव ने ब्राह्मणों को वश में करने के लिये एक यज्ञ किया था। उस यज्ञ में सम्मिलित होने वाले ब्राह्मणों (ब्रह्मक्षत्रों) को धोखे से भोजन में मांस खिला दिया गया। जिससे उनका ब्रह्मत्व नष्ट हो गया उनका ब्रह्मत्व नष्ट हो गया उनका ब्रह्मत्व नष्ट हो जाने पर जो अजमेर को छोडकर मालवा प्रदेश में आकर बस गये और कृषि कार्य करने लगे या यवनों के आक्रमण के कारण जो कृषि कर्मी क्षत्रीय मालवा में आकर बस गये तथा जो आरम्भ से ही मालवा प्रदेश के रहने वाले थे, कृषक क्षत्रीय मालवधाकड कहलाये। मुखयतः मालव धाकडों में अग्निवंशी क्षत्रिय हैं। इतिहासकारों ने परमार (ब्रह्ममक्षत्र)चौहान,सोलंकी प्रतिहार क्षत्रीय वंशोें को अग्निवंश में माना है मालव धाकडों को ''मेवाडा'' एवं ''सोलिया'' भी कहा जाता है। यह फर्क क्षेत्रीयतानुसार प्रतीत होता है।
किराड़
जोधपुर राज्य के परगने मालानी में बाडमेर से १० मील उतरपद्गिचम में प्राचीनऐतिहासिक नगर किराडू, किरारकोट या किरारकूट (किराडू) कहा जाने वाला ध्वंशावद्गोष के रूप में स्थित है। यहॉ परमार शासकों के मन्दिरों के खंडहर हैं। मूलनगर वीरान हो चुका है। किराडू परमारवंशी क्षत्रीयों की राजधानी रही थी। किराडू का संस्थापक एवं प्रथम शासक तथा किराडू का परमार वंश का प्रथम ऐतिहासिक पुरूष सिन्धुराज वि०.सं०९५६ से ९८१ तक रहा। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार ९वीं सदी से लेकर १३ वीं सदी तक किराडू पर परमार,सोलंकी वंशी क्षत्रीयों का शासन रहा । यवन आक्रमण काल में यवनों का भारत में मुखयतः समृद्वि गूजर और मालवा प्रदेश की ओर जाने का मार्ग किराडू होकर ही था। अतः सबसे पहले यवनों का सामना किरार कोट (किराडू)को ही करना पडता था। अतः (कि=करना, रार=लडाई कोट =किला)इस नगर का ''किरार कोट या किरार कूट'' नाम पडने का यही कारण है। किरार कोट या किरार कूट का रूपान्तर शब्द किरारू या किराडू कहलाया। किरारू का अर्थ है (कि=करना, रारू =लडाकू)अर्थात लडाई करने वाले। राजस्थानी भाषा में ''र'' का उच्चारण ''ड'' किया जाता है। जिसके कारण किरारू शब्द को किराडू कहा जाता हैं।
Business idea no.1
DJ Sound Services – DJ ध्वनि सेवाएं
DJ Sound आजकल बहुत प्रचलित है| जब भी कोई Party या बारात आदि होती है, तो लोग Enjoyment के लिए DJ Hire करते है| ऐसे में यदि आप DJ Sound Services शुरू करते है, तो आपके लिए यह एक छोटा Part Time Business होगा, जिसमे आप अच्छा पैसा कमा सकते है| एक DJ Sound Services Business शुरू करने के लिए आपको सबसे पहले DJ Tools खरीदने की आवश्यकता होगी एवं आपको 2-3 व्यक्तियों को काम पर रखने की आवश्यकता होगी |
Relationship
किसी भी रिश्ते को कितनी भी खूबसूरती 👩 से क्यों ना बांधा जाए, अगर नज़रों 👀 में इज्जत और बोलने 🗣️ में लिहाज न हो तो वह टूट जाता है़..! ❌
#NITIN
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देश की सबसे बड़ी 😅 अंधश्रद्धा, शादी 👫 कर दो लड़का 😈 सुधर जायगा !!
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तेरी यारी में हम कुछ बिगड़ से गए शरीफ तो वैसे भी थे नहीं अब एक्स्ट्रा कमीने हो गए.